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ब्लड से कितने प्रकार की जांच होती है?
शरीर में खून की कमी होना, ब्लड में किसी तरह का संक्रमण होना, ब्लड में ग्लूकोज की मात्रा की जांच, रेड और वाइट ब्लड सेल्स की मात्रा , प्लेटलेट्स काउंट, प्लाजमा आदि की ठीक-ठीक उपस्थिति का पता ब्लड टेस्ट के जरिए ही चलता है।
पैथोलॉजी में कौन कौन से टेस्ट होते हैं?
संक्रामक रोगों की जांच के लिए माइक्रोबायोलॉजी विभाग में सैंपल की जांच होती है। वहीं पैथोलॉजी में खून संबंधी और कोशिका (टिशु) से जुड़ी जांचें जबकि बायोकेमेस्ट्री में ब्लड में कोलेस्ट्रॉल, शुगर, क्रिएटिनिन और लिपिड प्रोफाइल लेवल की जांच कर रिपोर्ट तैयार की जाती है।
कैंसर के लिए कौन सा टेस्ट होता है?
वर्तमान में मरीजों में कैंसर की पुष्टि के लिए कई तरह के टेस्ट किए जाते हैं जैसे- कोलोनास्कोपी, मेमोग्राफी और पैप टेस्ट. नए टेस्ट की मदद से कैंसर की जांच और आसानी से की जा सकेगी.
ब्लड टेस्ट कब करना चाहिए?
ऐसे में डॉक्टर्स सलाह देते हैं कि ब्लड टेस्ट (Blood Test) को सुबह जितनी जल्दी हो उतनी जल्दी कराने की कोशिश करनी चाहिए। क्योंकि जितनी देर आप सोते हैं तो वो घंटे उपवास के रूप में माने जा सकते हैं। ऐसे में आपको उठकर उपवास रखने की जरूरत नहीं पड़ेगी।
CBC टेस्ट से क्या पता चलता है?
What is CBC used for? सीबीसी एक सामान्य रूप से निष्पादित रक्त परीक्षण है जिसे अक्सर नियमित जांच के हिस्से के रूप में शामिल किया जाता है। संक्रमण, एनीमिया, प्रतिरक्षा प्रणाली, और रक्त के कैंसर सहित विभिन्न विकारों का पता लगाने में मदद के लिए पूर्ण रक्त गणना का उपयोग किया जा सकता है।
पैथोलॉजी कितने प्रकार के होते हैं?
पैथोलॉजी मेडिकल साइंस की एक शाखा है। इसके अन्तर्गत रोग विशेषकर कारणों, विकास और उसके प्रभावों का आकलन किया जाता है। इसकी दो प्रमुख शाखाएं हैं– क्लीनिकल पैथोलॉजी और एनाटॉमिकल पैथोलॉजी।
पैथोलॉजी डॉक्टर का क्या काम होता है?
बीमारी का सही पता चलता है पैथोलॉजी (Pathology) टेस्ट (Tests) के जरिए, जिसमें शरीर के विभिन्न अंगों और ब्लड के सैंपल की लैब उपकरणों से जांच की जाती है. इन जांच करने वाले विशेषज्ञों को हम पैथोलॉजिस्ट (Pathologist) के तौर पर जानते हैं.
पैथोलॉजी कितने प्रकार की होती है?
पैथोलॉजी के तीन मुख्य उपप्रकार हैं : एनाटोमिकल पैथोलॉजी, क्लिनिकल पैथोलॉजी और मॉलिक्यूलर पैथोलॉजी। इन उपप्रकारों को और भी विशिष्ट श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है; पैथोलॉजी एक विविध क्षेत्र है क्योंकि इतने सारे अलग-अलग रोग और रोगों के अध्ययन के तरीके मौजूद हैं।, There are three main subtypes of pathology: anatomical pathology, clinical pathology, and molecular pathology. These subtypes can be broken down into even more specific categories; pathology is a diverse field because so many different diseases and ways of studying diseases exist.
शरीर में कैंसर का पता कैसे लगाएं?
- शरीर के किसी भी हिस्से में लंबे समय तक दर्द का बने रहना. …
- लंबे समय से खांसी हो रही है तो जांच जरूर करवाएं. …
- मूत्राशय या पेशाब से जुड़ी दिक्कतें बनी रहती हैं तो पर्याप्त जांच करानी चाहिए. …
- महिलाओं को मेनोपॉज के बाद जांच कराते रहना चाहिए. …
- बिना किसी कारण के वजन कम होना एक अलार्म है.
कैसे जल्दी कैंसर का पता लगाने के लिए?
फिलहाल कैंसर का पता लगाने के लिए सिर्फ एक कन्फर्मेटिव टेस्ट है और वह सस्पेक्टेड ट्यूमर की बायॉप्सी। यह टेस्ट इस बात पर निर्भर करता है कि मरीज अपने शरीर में किसी तरह का लक्षण या गांठ देखे जिसे डॉक्टर को दिखाने के बाद डॉक्टर उसे कैंसर के संकेत मानकर टेस्ट करवाने को कहें।
खून की जांच से कौन कौन से रोगों का पता लगाया जा सकता है?
अचानक वजन घटने, खून की कमी, पॉलिसाइथिमिया, इंफेक्शन, रक्त विकार, सर्जरी से पहले, किसी हिस्से में रक्तस्त्राव होने के अलावा कुछ विशेष कैंसर जैसे लिम्फोमा, ल्यूकेमिया व बोनमैरो से जुड़े रोगों को पता लगाने के लिए यह टैस्ट किया जाता है।
पैथोलॉजी कितने साल का होता है?
पैथोलॉजी कोर्स कई तरह के होते हैं हर एक कोर्स के लिए अलग-अलग समय समय लगता है। BSc in Pathology कोर्स को करने के लिए आपको 3 साल का समय लगता है। Bachelor in medical lab technician कोर्स को करने के लिए भी 3 वर्ष का समय लगता है। MD pathology course करने के लिए 3 वर्ष का समय ही लगता है।
लैब तकनीशियन कोर्स क्या है?
10वीं, 12वीं और ग्रेजुएशन की डिग्री के बाद किया जाना वाला लैब टेक्नीशियन कोर्स पैरामेडिकल कोर्स की श्रेणी में शामिल एक उच्च कोटि का कोर्स है। कोई व्यक्ति अगर लैब टेक्नीशियन कोर्स करता है, तो इस कोर्स में उसे ब्लड बैंकिंग, माइक्रोबायोलॉजी, पैथोलॉजी और बायो केमिस्ट्री जैसे सब्जेक्ट पढ़ाए जाते हैं।
पैथोलॉजिस्ट कैसे बने?
- 10+2 साइंस से करें …
- UG मेडिकल एंट्रेंस एग्जाम दें: …
- मेडिकल कॉलेज में दाखिला लें: …
- Pathologist बनने के लिए PG मेडिकल एंट्रेंस एग्जाम दें: …
- MD (Pathology) के लिए एडमिशन लें
5 Important Blood Tests You Should Get Annualy In Hindi – इन 5 ब्लड टेस्ट से जानें अपनी सेहत का राज, साल में एक बार जरूर कराएं जांच
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थायरॉइड पैनल
लिपिड प्रोफाइल
हीमोग्लोबिन A1C टेस्ट
किडनी फंक्शन टेस्ट
सीबीसी टेस्ट (कंप्लीट ब्लड काउंट)
blood test, क्या आपको पता है? क्यों कराते रहना चाहिए Blood Test – why blood test on time to time – Navbharat Times
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- Most searched keywords: Whether you are looking for blood test, क्या आपको पता है? क्यों कराते रहना चाहिए Blood Test – why blood test on time to time – Navbharat Times Updating ब्लड टेस्ट के जरिए शरीर के कई दूसरे अंगों के बारे में भी पता किया जा सकता है कि वे ठीक प्रकार से काम कर रहे हैं या कोई दिक्कत है। जैसे किडनी, लीवर, हर्ट की जांच हो सकती है। इसके साथ ही कई तरह के इंफेक्शन और बीमारियों का भी समय रहते पता चल जाता है।क्यों जरूरी है खून की जांच, कब कराएं खून की जांच, why blood test is necessary, when should go for blood test, blood test,
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ब्लड टेस्ट के जरिए शरीर के कई दूसरे अंगों के बारे में भी पता किया जा सकता है कि वे ठीक प्रकार से काम कर रहे हैं या कोई दिक्कत है। जैसे किडनी लीवर हर्ट की जांच हो सकती है। इसके साथ ही कई तरह के इंफेक्शन और बीमारियों का भी समय रहते पता चल जाता है।
know about lab tests for diagnosis | सुबह जांचें कराने से मिलती है बीमारी की सटीक जानकारी | Patrika News
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- Most searched keywords: Whether you are looking for know about lab tests for diagnosis | सुबह जांचें कराने से मिलती है बीमारी की सटीक जानकारी | Patrika News Updating सैम्पल की जांच माइक्रोबायोलॉजी, पैथोलॉजी व बायोकैमिस्ट्री लैब में होती। 01 बार लिए गए सैंपल से कई तरह कई तरह की जांचें हो सकती हैं। रोगी को बार-बार इंजेक्शन से चुभन नहीं होती। 8-9 बजे के बीच या इससे पहले यानी सुबह के समय की गई जांचों से रोग की पुष्टि ज्यादा अच्छे से होती है। | Disease and Conditions News | Health News | Patrika Newscancer diagnosis,diagnosis,Diagnosis & Treatment,drug lab test report,hiv diagnosis,lab test,lab tests,Symptoms & Diagnosis,thalassemia diagnosis | Disease and Conditions News | | Health News News
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राहत देने वाली खबर: अब खून की जांच से पता चलेगा कैंसर, यह शरीर में किस हद तक फैला है ऐसे समझ सकेंगे | TV9 Bharatvarsh
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वैज्ञानिकों ने ऐसा ब्लड टेस्ट विकसित किया है जिससे कैंसर का पता लगाया जा सकता है यह पहला ऐसा ब्लड टेस्ट है जो कैंसर की जानकारी देने के साथ यह भी बताता है कि बीमारी शरीर में फैली है या नहीं जानिए यह कैसे काम करता है
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ब्लड टेस्ट के जरिए शरीर के कई दूसरे अंगों के बारे में भी पता किया जा सकता है कि वे ठीक प्रकार से काम कर रहे हैं या कोई दिक्कत है। जैसे किडनी लीवर हर्ट की जांच हो सकती है। इसके साथ ही कई तरह के इंफेक्शन और बीमारियों का भी समय रहते पता चल जाता है।
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इन 5 ब्लड टेस्ट से जानें अपनी सेहत का राज, साल में एक बार जरूर कराएं जांच
ब्लड टेस्ट यानी खून की जांच द्वारा आपके शरीर की अंदरूनी सेहत के बारे में आसानी से पता लगाया जा सकता है। शरीर के ज्यादातर अंगों के फंक्शन को जांचने के लिए ब्लड और यूरिन का टेस्ट करना पर्याप्त होता है। इसका कारण यह है कि ब्लड यानी खून हमारे पूरे शरीर में प्रवाहित होता है और किसी भी अंग में गड़बड़ी होने पर खून में भी इसका असर पड़ता है। अगर आप अपनी अंदरूनी सेहत के बारे में जानना चाहते हैं, तो साल में कम से कम एक बार ये 5 ब्लड टेस्ट जरूर करवाएं। इन टेस्ट्स के द्वारा बीमारियों का सही समय पर पता लग जाने पर इलाज और रोकथाम बहुत आसान हो जाती है और आपको अपनी सेहत का भी अंदाजा हो जाता है।
थायरॉइड पैनल
थायरॉइड हमारे शरीर में महत्वपूर्ण हार्मोन्स के स्राव में मदद करता है। आपको हर साल थायरॉइड टेस्ट जरूर करवाना चाहिए। अगर आपको थायरॉइड से जुड़ी बीमारी नहीं भी है, तो भी इस टेस्ट से आपको अपनी सेहत के बारे में जरूरी बातें पता लगेंगी। आमतौर पर थायरॉइड टेस्ट में 3 चीजों की जांच शामिल होती हैं- टी3, टी4 और टीएचएस। भारतीय लोगों में थायरॉइड तेजी से बढ़ रहा है। चूंकि थॉयराइड एक साइलेंट किलर है और ये बीमारी महिला और पुरुष दोनों को हो सकती है। इसलिए थायरॉइड टेस्ट जरूरी है।
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लिपिड प्रोफाइल
लिपिड प्रोफाइल के द्वारा आप अपने शरीर में कोलेस्ट्रॉल की जांच करवा सकते हैं। आमतौर पर लिपिड प्रोफाइल में 4 तरह के टेस्ट शामिल होते हैं- टोटल कोलेस्ट्रल (TC), हाई डेंसिटी लिपोप्रोटीन (HDL या गुड कोलेस्ट्रॉल), लो डेंसिटी लिपोप्रोटीन (LDL या बैड कोलेस्ट्रॉल) और ट्राईग्लिसराइड्स (TG)। इन सभी जांचों के द्वारा दिल के स्वास्थ्य के बारे में जाना जा सकता है। इस टेस्ट में एडीएल के साइज और उनके पार्टिकल्स के बारे में पता लगाया जाता है। एचडीएल को हाई डेंसिटी लीपोप्रोटीन कहते हैं। इसकी कमी से दिल की बीमारी होने का खतरा रहता है।
हीमोग्लोबिन A1C टेस्ट
A1C द्वारा आपके शरीर में ग्लूकोज के पिछले 3 महीने के स्तर का पता लगाया जा सकता है। अगर आप इस टेस्ट को हर साल करवाते हैं, तो आप डायबिटीज जैसी गंभीर बीमारी से बच सकते हैं। डायबिटीज के मरीज भारत ही नहीं, दुनियाभर में बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं। ऐसे में ये ब्लड टेस्ट बहुत जरूरी है।
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किडनी फंक्शन टेस्ट
किडनी फंक्शन टेस्ट इसलिए किया जाता है, ताकि ये पता लगाया सके कि आपकी किडनियां सही काम कर रही हैं या नहीं। किडनी फंक्शन टेस्ट में 2 प्रकार के टेस्ट किए जाते हैं, जिन्हें ACR (एल्बुमिन टू क्रिएटिनिन रेशियो) और GFR (ग्लोमेरुलर फिल्ट्रेशन रेट) कहते हैं। ACR टेस्ट में आपके यूरिन की जांच की जाती है जबकि GFR टेस्ट में आपके खून में क्रिएटिनिन नाम के तत्व की जांच की जाती है। GFR टेस्ट में मिले क्रिएटिनिन की मात्रा के आधार पर ही ये पता लगाया जाता है कि आपकी किडनियां कितनी ठीक तरह काम कर रही हैं।
सीबीसी टेस्ट (कंप्लीट ब्लड काउंट)
कंप्लीट ब्लड काउंट आपके कई अंगों के स्वास्थ्य के बारे में बताता है इसलिए ये एक जरूरी जांच है। कंप्लीट ब्लड काउंट टेस्ट द्वारा आपको लिवर, हार्ट और किडनी के बारे में पता चलता है। इस जांच में व्यक्ति के खून में मौजूद सेल्स की जांच की जाती है। अगर किसी व्यक्ति के खून में रक्त कण कम या अधिक हैं तो उसे स्वास्थ्य संबंधित समस्या हो सकती है।
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सुबह जांचें कराने से मिलती है बीमारी की सटीक जानकारी
रोगों की जांच के लिए चिकित्सा जगत में खासतौर पर तीन तरह की लैब का प्रयोग होता है। संक्रामक रोगों की जांच के लिए माइक्रोबायोलॉजी विभाग में सैंपल की जांच होती है। वहीं पैथोलॉजी में खून संबंधी और कोशिका (टिशु) से जुड़ी जांचें जबकि बायोकेमेस्ट्री में ब्लड में कोलेस्ट्रॉल, शुगर, क्रिएटिनिन और लिपिड प्रोफाइल लेवल की जांच कर रिपोर्ट तैयार की जाती है।
बीमारी को जानने के लिए जब सैंपल विभिन्न विभागों की मशीनों में लगाते हैं तो संबंधित विभाग के चिकित्सक क्वालिटी कंट्रोल पर नजर रखते हैं जिसके बाद मशीन डाटा देती है। एक्सपर्ट चिकित्सकों की टीम डाटा की स्टडी व एनालिसिस करने के बाद रिपोर्ट तैयार करती है जिसके बाद व्यक्ति में रोग की पुष्टि होती है। इसी रिपोर्ट के आधार पर विशेषज्ञ दवा, डोज व इलाज का तरीका तय करते हैं।
एक सैंपल से कई जांचें –
सेंट्रलाइज सैंपल कलेक्शन के तहत कोई व्यक्ति किसी समस्या को लेकर अस्पताल पहुंचता है तो उसे एक बार सैंपल देना होता है। इसी सैंपल को अलग-अलग टैस्ट ट्यूब में डालकर विभागों में भेजते हैं। इस सुविधा से रोगी को बार-बार सुई की चुभन से परेशान और सैंपल देने के लिए भागदौड़ नहीं करनी पड़ती है।
स्टे्रन बदलने से फैलती बीमारी –
मिशिगन स्टे्रन वायरस की प्रकृति में बदलाव से रोग तेजी से फैलते हैं क्योंकि उस वक्त उसकी रोकथाम व इलाज के लिए कोई उचित व्यवस्था व दवा नहीं होती। इंफ्लूएंजा वायरस में जेनेटिक बदलाव को एंटीजेनिक ड्रिफ्ट व दो अलग स्ट्रेन के मिलने से बने नए वायरस की प्रक्रिया को एंटीजेनिक शिफ्ट कहते हैं। मौसमी बदलाव से लोगों की इम्युनिटी घटती है जिसके लिए वैक्सीन लगवाते हैं। यह स्ट्रेन संबंधी दिक्कतों की आशंका घटाती है।
भोजन के बाद टैस्ट –
भूखे पेट और कुछ खाने के बाद मुख्य रूप से ईएसआर, ब्लड शुगर, कोलेस्ट्रॉल की जांच होती है। इससे शरीर में कुछ भी खाद्य पदार्थ न होने या इनकी उपस्थिति में शरीर में क्या बदलाव हैं, जानकारी मिलती है। इनके आधार पर एक्सपर्ट रोग की पॉजिटिव व नेगेटिव रिपोर्ट तैयार करते हैं।
गड़बड़ी न हो – कई बार देखा जाता है कि एक ही दिन में रोगी एक तरह की जांच अलग-अलग लैब से करवाता है जिसकी जांच रिपोर्ट एक दूसरे से भिन्न होती है। इसका प्रमुख कारण कई बार सैंपल कलेक्शन में बरती गई लापरवाही, जांच के लिए प्रयोग हुए सॉल्युशन या इंजेक्शन में किसी तरह की खराबी मुख्य वजह है। मशीन में किसी तरह की तकनीकी खराबी से भी गलत रिपोर्ट बनने के मामले सामने आते हैं। ऐसी स्थिति में एक बार डॉक्टर से मिलने के बाद अच्छी लैब से क्रॉस चेक जरूर करवाना चाहिए।
इसलिए सुबह जांच – यूरिन जांच सुबह इसलिए कराते हैं क्योंकि रातभर यूरिन ब्लैडर में भरा रहता है। उसकी जांच होने पर बैक्टीरिया का पता आसानी से चल जाता है। इसी तरह टीबी की जांच के लिए बलगम का सैंपल सुबह उठते ही निकालकर जमा किया जाता है। इसका कारण उस सैंपल में किटाणु पर्याप्त मात्रा में आ जाते हैं जिनकी पहचान जांच के बाद आसानी से हो जाती है।
स्टे्रन बदलने से फैलती बीमारी –
मिशिगन स्टे्रन वायरस की प्रकृति में बदलाव से रोग तेजी से फैलते हैं क्योंकि उस वक्त उसकी रोकथाम व इलाज के लिए कोई उचित व्यवस्था व दवा नहीं होती। इंफ्लूएंजा वायरस में जेनेटिक बदलाव को एंटीजेनिक ड्रिफ्ट व दो अलग स्ट्रेन के मिलने से बने नए वायरस की प्रक्रिया को एंटीजेनिक शिफ्ट कहते हैं। मौसमी बदलाव से लोगों की इम्युनिटी घटती है जिसके लिए वैक्सीन लगवाते हैं। यह स्ट्रेन संबंधी दिक्कतों की आशंका घटाती है।
लैब टैस्ट – वायरस लैब : इसमें वायरस के म्यूटेशन व एंटीजेनिक बदलाव (प्रकृति) को परखा जाता है। इसके लिए लैब में इन वायरस की सिक्वेंसिंग कर इनके दुष्प्रभावों के बारे में आसानी से पता लगाया जा सकता है।
ड्रग रेसिस्टेंस सर्विलांस : इससे रोगी में दवा के असर व दवा की डोज का पैमाना तय होता है। इससे दवा के असर के अलावा रोगी की इम्युनिटी के हिसाब से दवा का क्या स्तर होगा, का पता लगाते हैं।
राहत देने वाली खबर: अब खून की जांच से पता चलेगा कैंसर, यह शरीर में किस हद तक फैला है ऐसे समझ सकेंगे
वैज्ञानिकों ने ऐसा ब्लड टेस्ट विकसित किया है जिससे कैंसर का पता लगाया जा सकता है. यह पहला ऐसा ब्लड टेस्ट है जो कैंसर की जानकारी देने के साथ यह भी बताता है कि बीमारी शरीर में फैली है या नहीं. जानिए यह कैसे काम करता है…
वैज्ञानिकों ने ऐसा ब्लड टेस्ट विकसित किया है जिससे कैंसर का पता लगाया जा सकता है. यह पहला ऐसा ब्लड टेस्ट है जो कैंसर की जानकारी देने के साथ यह भी बताता है कि बीमारी शरीर में फैली है या नहीं. वर्तमान में मरीजों में कैंसर की पुष्टि के लिए कई तरह के टेस्ट किए जाते हैं जैसे- कोलोनास्कोपी, मेमोग्राफी और पैप टेस्ट. नए टेस्ट की मदद से कैंसर की जांच और आसानी से की जा सकेगी.
इस टेस्ट को विकसित करने वाली ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं का कहना है, इस जांच से मरीजों में मेटास्टेटिक कैंसर का पता लगाया जा सकता है. यह वो बेहद गंभीर किस्म का कैंसर होता है जो पूरे शरीर में फैलता है.
यह टेस्ट क्यों खास है, यह कैसे काम करता है, मरीजों को इसका कैसे फायदा मिलेगा, जानिए इन सवालों के जवाब…
कैसे काम करता है नया ब्लड टेस्ट
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के मुताबिक, नया ब्लड टेस्ट कितना सफल है इसे समझने के लिए 300 मरीजों के सैम्पल लिए गए. इनमें से 94 फीसदी मरीजों में सफलतापूर्वक कैंसर का पता चला. इस टेस्ट में खास तरह की तकनीक का इस्तेमाल किया गया है जिसे NMR मेटाबोलोमिक्स कहते हैं.
शोधकर्ता डॉ. जेम्स लार्किन कहते हैं, इंसान के शरीर में कई तरह के केमिकल बनते रहते हैं. इन्हें बायोमर्कर कहते हैं. इनकी जांच करके इंसान के शरीर के बारे में काफी कुछ जाना जा सकता है. नया ब्लड टेस्ट करके इंसान के ब्लड में ऐसे बायोमार्कर्स को पहचाना जाता है जो बताते हैं कि इंसान कैंसर से जूझ रहा है या नहीं. कैंसर होने पर शरीर में कुछ खास तरह के बायोमार्कर पाए जाते हैं, ब्लड टेस्ट के जरिए इन्हीं को पहचाना जाता है.
मरीजों को कैसे राहत मिलेगी?
वर्तमान में मरीजों में कैंसर की पुष्टि के लिए कई तरह के टेस्ट करने पड़ते हैं, जो महंगे होते हैं. इसके साथ ही इन्हें कराने में समय भी लगता है. मरीजों के लिए नया ब्लड टेस्ट आसान विकल्प साबित होगा क्योंकि ब्लड सैम्पल लेना आसान है.
शोधकर्ताओं का कहना है, यह ब्लड टेस्ट उन मरीजों का भी किया जा सकता है जिसमें ऐसे नॉन-स्पेसिफिक लक्षण दिखते हैं कि कहना मुश्किल होता है कि वो कैंसर से जूझ रहा है या नहीं. जैसे- थकान रहना और तेजी से वजन का घटना.
शोधकर्ता लार्किन कहते हैं, हमारा अगला टार्गेट है इसके लिए फंडिंग तैयार करना. इसके अलावा अगले क्लीनिकल ट्रायल के तहत 3 सालों में 2 से 3 हजार मरीजों का जांच की जाएगी. ये जांचें फंडिंग पर निर्भर हैं. इन ट्रायल के आधार पर ही हमें रेग्युलेटरी अथॉरिटी से अप्रूवल मिलेगा और इस टेस्ट से आम लोगों की जांच की जाएगी. अप्रूवल मिलने के बाद आम लोगों के लिए कैंसर की जांच कराना आसान हो सकेगा.
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