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Poem on Environment | Hindi Poem/Kavita on Environment/Nature class 3/4/5
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25+ Hindi Poems on Nature – प्रकृति पर हिंदी बाल कविताएँ
Best Nature Poems in Hindi · 1: प्रकृति संदेश / सोहनलाल द्विवेदी · 2: बसंत मनमाना / माखनलाल …
Source: sahityadarpan.com
Date Published: 5/1/2021
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Beautiful Poem on Nature in Hindi | प्रकृति की सुंदरता पर हिंदी …
When you hear the word nature, what do you think it is? Do you think it is essential? Nature is everything that was put on this planet whether it is the …
Source: bestlovesms.in
Date Published: 8/6/2021
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Poem about Nature in Hindi, Poems in Hindi on Nature, प्रकृति …
Poem about Nature in Hindi – दोस्तों आज इस पोस्ट में कुछ प्राकृतिक पर आधारित कविता लिखी गई …
Source: www.hindipoem.org
Date Published: 9/10/2022
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15+ Best Poem on Nature in Hindi | प्रकृति पर कविताएँ
Poem on Nature in Hindi: आधुनिकता में मनुष्य प्रकृति को भूलता जा रहा है, हम लेकर आये हैं प्रकृति …
Source: thesimplehelp.com
Date Published: 9/26/2022
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Poem On Nature In Hindi: प्रकृति पर कविताएँ हिंदी में.
Poem On Nature in hindi. इन्हें भी पढ़े- Poem On Nature in hindi. prakriti poem in hindi, kavita on prakriti in hindi,. जानिए …
Source: www.gurujiinhindi.com
Date Published: 4/3/2021
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Hindi Poem on Nature | 4 BEST प्रकृति पर कविता, बसंत की आहट …
Oct 17, 2021 – Hindi Poem on Nature अपने भीतर सम्पूर्ण सृष्टि की मनोहरता को समाहित किए होती हैं।
Source: in.pinterest.com
Date Published: 12/30/2021
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7+ प्रकृति पर कविता – Poem on Nature in Hindi
Poem on Nature in Hindi : आज हमने प्रकृति पर कविता कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11 & 12 के विद्यार्थियों …
Source: hindiyatra.com
Date Published: 2/15/2021
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Poems on Nature in Hindi | प्रकृति की कविताओं का संग्रह
अन्न पैदा होगा भरमार ।। खूशहाली आयेगी देश में । किसान हल चलायेगा खेत में ।। वृक्ष लगाओ …
Source: www.hindpatrika.com
Date Published: 3/25/2021
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25+ Hindi Poems on Nature | प्रकृति पर कविताएँ | प्रकृति पर हिंदी बाल कविताएँ
अगअग आप Hindi poems about nature ढूंढ तो तो यह बहुत बहुत प्कृति कविताएँ कविताएँ मिल |
प्रकृति के बिना हमारा जीवन अधूरा है | प्रकृति है तो हम है | यहाँ प्ककogr.
प्रकृति बचाये रखना कर्तव्य और हम हम जितना दे दे प्रकृति अच्छा हमारे होगा इसी कारणवश कारणवश भारत १ १ तक तक को प्रकृति का के किताबे में पर पर पर पर गयी गयी दी | आजहम देखेनेग कुछ बेहेतरीन कविताएँ प्रकृति पर|
There are many things in nature like vegetables and many fruits. You can check the name of vegetables and fruits to learn more.
Best Nature Poems in Hindi
1: प्रकृति संदेश / सोहनलाल द्विवेदी | प्रकृति का संदेश kavita
कविता का नाम :प्रकृति संदेश
कविता के लेखक : सोहनलाल द्विवेदी
पर्वत कहता शीश उठाकर,
तुम भी ऊँचे बन जाओ।
सागर कहता है लहराकर,
मन में गहराई लाओ। समझ रहे हो क्या कहती हैं
उठ उठ गिर गिर तरल तरंग
भर लो भर लो अपने दिल में
मीठी मीठी मृदुल उमंग! पृथ्वी कहती धैर्य न छोड़ो
कितना ही हो सिर पर भार,
नभ कहता है फैलो इतना
ढक लो तुम सारा संसार! सोहनलाल द्विवेदी
प्रकृति संदेश Hindi poems about nature
2: बसंत मनमाना | माखनलाल चतुर्वेदी | Nature Poem in Hindi
कविता का नाम :बसंत मनमाना
कविता के लेखक : माखनलाल चतुर्वेदी
चादर-सी ओढ़ कर ये छायाएँ
तुम कहाँ चले यात्री, पथ तो है बाएँ। धूल पड़ गई है पत्तों पर डालों लटकी किरणें
छोटे-छोटे पौधों, को चर, रहे, बाग, में,
दोनों हाथ बुढ़ापे के थर-थर काँपे सब ओर
–
बढ़ आते हैं, चढ़ आते हैं, गड़े हुए हों जैसे
उनसे बातें कर पाता हूँ कि मैं कुछ जैसे-तैसे।
पर्वत की घाटी के पीछे लुका-छिपी का खेल
खेल रही है वायु शीश पर सारी दनिया झेल। छोटे-छोटे खरगोशों से उठा-उठा सिर बादल
किसको पल-पल झांक रहे हैं आसमान के पागल?
ये कि पवन पर, पवन कि इन पर, फेंक नज़र की डोरी
खींच रहे हैं किसका मन ये दोनों चोरी-चोरी?
फैल गया है पर्वत-शिखरों तक बसन्त मनमाना,
पत्ती, कली, फूल, डालों में दीख रहा मस्ताना। माखनलाल चतुर्वेदी
बसंत मनमाना Hindi poems about nature by माखनलाल चतुर्वेदी
3: ये वृक्षों में उगे परिन्दे / माखनलाल चतुर्वेदी | कुदरत पर कविता | Light poem about nature in Hindi
कविता का नाम :ये वृक्षों में उगे परिन्दे
कविता के लेखक : माखनलाल चतुर्वेदी
ये वृक्षों में उगे परिन्दे
पंखुड़ि-पंखुड़ि पंख लिये
अग जग में अपनी सुगन्धित का
दूर-पास विस्तार किये। झाँक रहे हैं नभ में किसको
फिर अनगिनती पाँखों से
जो न झाँक पाया संसृति-पथ
कोटि-कोटि निज आँखों से। श्याम धरा, हरि पीली डाली
हरी मूठ कस डाली
कली-कली बेचैन हो गई
झाँक उठी क्या लाली! आकर्षण को छोड़ उठे ये
नभ के हरे प्रवासी
सूर्य-किरण सहलाने दौड़ी
हवा हो गई दासी। बाँध दिये ये मुकुट कली मिस
कहा-धन्य हो यात्री!
धन्य डाल नत गात्री।
पर होनी सुनती थी चुप-चुप
विधि -विधान का लेखा!
उसका ही था फूल
हरी थी, उसी भूमि की रेखा। धूल-धूल हो गया फूल
गिर गये इरादे भू पर
युद्ध समाप्त, प्रकृति के ये
गिर आये प्यादे भू पर। हो कल्याण गगन पर-
मन पर हो, मधुवाही गन्ध
हरी-हरी ऊँचे उठने की
बढ़ती रहे सुगन्ध! पर ज़मीन पर पैर रहेंगे
प्राप्ति रहेगी भू पर
ऊपर होगी कीर्ति-कलापिनि
मूर्त्ति रहेगी भू पर।। माखनलाल चतुर्वेदी
4: प्रकृति कुछ पाठ पढ़ाती है / श्रीकृष्ण सरल | प्रकृति का संदेश kavita | Nature poems in hindi for grade 10
कविता का नाम :प्रकृति कुछ पाठ पढ़ाती है
कविता के लेखक : श्रीकृष्ण सरल
प्रकृति कुछ पाठ पढ़ाती है,
मार्ग वह हमें दिखाती है।
प्रकृति कुछ पाठ पढ़ाती है। नदी कहती है’ बहो, बहो
जहाँ हो, पड़े न वहाँ रहो।
जहाँ गंतव्य, वहाँ जाओ,
पूर्णता जीवन की पाओ।
विश्वगतिहीतोजीवनहै,
अगति तो मृत्यु कहाती है।
प्रकृति कुछ पाठ पढ़ाती है। शैल कहतें है, शिखर बनो,
उठो ऊँचे, तुम खूब तनो।
ठोस आधार तुम्हारा हो,
विशिष्टिकरण सहारा हो।
रहो तुम सदा उर्ध्वगामी,
उर्ध्वता पूर्ण बनाती है।
प्रकृति कुछ पाठ पढ़ाती है। वृक्ष कहते हैं खूब फलो,
दान के पथ पर सदा चलो।
सभी को दो शीतल छाया,
पुण्य है सदा काम आया।
विनय से सिद्धि सुशोभित है,
अकड़ किसकी टिक पाती है।
प्रकृति कुछ पाठ पढ़ाती है। यही कहते रवि शशि चमको,
प्राप्त कर उज्ज्वलता दमको।
अंधेरे से संग्राम करो,
न खाली बैठो, काम करो।
काम जो अच्छे कर जाते,
याद उनकी रह जाती है।
प्रकृति कुछ पाठ पढ़ाती है। श्रीकृष्ण सरल
5: प्रकृति रमणीक है / जगदीश गुप्त | प्रकृति के गुणों पर कविता | Hindi Poems on Environment
कविता का नाम :प्रकृति रमणीक है
कविता के लेखक : जगदीश गुप्त
प्रकृति रमणीक है।
जिसने इतना ही कहा-
उसने संकुल सौंदर्य के घनीभूत भार को
आत्मा के कंधों पर
पूरा नहीं सहा!
भीतर तक
क्षण भर भी छुआ यदि होता-
सौंदर्य की शिखाओं ने,
जल जाता शब्द-शब्द,
रहता बस अर्थकुल मौन शेष।
ऐसा मौन-जिसकी शिराओं में,
सारा आवेग-सिंधु,
पारे-सा-
इधर-उधर फिरता बहा-बहा!
प्रकृति ममतालु है!
दूधभरी वत्सलता से भीगी-
छाया का आँचल पसारती,
-ममता है!
स्निग्ध रश्मि-राखी के बंधन से बांधती,
-निर्मल सहोदरा है!
बाँहों की वल्लरि से तन-तरू को
रोम-रोम कसती-सी!
औरों की आँखों से बचा-बचा-
—
-प्रकृति प्रणयिनी है!
बूंद-बूंद रिसते इस जीवन को, बांध मृत्यु -अंजलि ेु.ु
भय के वनांतर में उदासीन-
शांत देव-प्रतिमा है!
मेरे सम्मोहित विमुग्ध जलज-अंतस् पर खिंची हुई
प्रकृति एक विद्युत की लीक है!
ठहरों कुछ, पहले अपने को, उससे सुलझा लूँ
तब कहूँ- प्रकृति रमणीक है… जगदीश गुप्त
6: प्रकृति और हम / अनातोली परपरा | प्रकृति पर कविता short | Heart touching poem about nature in Hindi
कविता का नाम :प्रकृति और हम
कविता के लेखक : अनातोली परपरा
जब भी घायल होता है मन
प्रकृति रखती उस पर मलहम
पर उसे हम भूल जाते हैं
ध्यान कहाँ रख पाते हैं उसकी नदियाँ, उसके सागर
उसके जंगल और पहाड़
सब हितसाधन करते हमारा
पर उसे दें हम उजाड़ योजना कभी बनाएँ भयानक
कभी सोच लें ऐसे काम
नष्ट करें कुदरत की रौनक
हम, जो उसकी ही सन्तान अनातोली परपरा
प्रकृति और हम / अनातोली परपरा Nature Poems in Hindi
7: प्रकृति और तुम / नीरजा हेमेन्द्र | कविता | Hindi Poem on Prakriti Nature
कविता का नाम :प्रकृति और तुम
कविता के लेखक : नीरजा हेमेन्द्र
अब हो रही हैं /ऋतुएँ परिवर्तित
शनै…शनै…शनै…
परिवर्तन सृष्टि का विधान है
शश्वत् है, अटल है, अभेद्य है
प्रकृति और पुरूष भी आबद्ध हैं
प्रकृति के नियमों से
प्रकृति जो पुरूष की सहचरी है,
सहभागी है, अर्द्ध अस्तित्व है
तब भी करता है वह प्रकृति को
आहत्/मर्माहत्
प्रकृति कभी नही करती उसका प्रतिकार
प्रतिवाद या कि विद्रोह
नदी का रूप धर
वह सागर के सागर के समीप
बहती चली जाती है
नैसर्गिक आकर्षण में आबद्ध
वह अपने हृदय में रखती है
विश्व द्वारा प्रक्षेपित कलुषताएँ
वह छोटी लताओं का रूप धर
वृक्षों के इर्द-गिर्द उग आती है
सहचरी -सी
वह उसकी ओर अग्रसर होती है
वृक्ष अपनी वृहदता पर
करता है मिथ्या अभिमान
वह होता है गर्वित
लताएँ वृक्ष से अपना शाश्वत् मोह
छोड़ नही पातीं
एक दिन वह वृक्ष को ढ़ँक लेती हैं
वृक्ष लताओं के अस्तित्व में
हो जाता है समाहित
वहाँ वृक्ष नही /दृष्टिगोचर होतीं हैं
सिर्फ लताएँ
प्रकृति ने अपने समर्पण से
प्रमाणित किया है कि प्रकृति
पुरूष के मिथ्या अभिमान को
तिरोहित करती थी/ तिरोहित करती है
तिरोहित करती रहेगी। नीरजा हेमेन्द्र
8: प्रकृति के दफ़्तर में कविता / शरद कोकास | Hindi nature poem
कविता का नाम :प्रकृति के दफ़्तर में
कविता के लेखक : शरद कोकास
कल शाम गुस्से में लाल था सूरज
प्रकृति के दफ़्तर में हो रहा है कार्य-विभाजन
जायज़ हैं उसके गुस्से के कारण
”
काम के घंटों में परिवर्तन ज़रूरी है
यह नई व्यवस्था की माँग है
बरखा, बादल, धूप, ओस, चाँदनी
सब किसी न किसी के अधीनस्थ
बंधी-बंधाई पालियों में
काम करने के आदी
”
धूप का मिज़ाज़ कुछ तेज़
चांदनी कोशिश में है
दिमाग की ठंडक यथावत रखने की
”
सुबह जल्दी आने की तैयारी में लगी है
दोपहर को नींद आने लगी है दोपहर में
सबके कार्य तय करने वाला मौसम
”
अब उसे अकेले नहीं रुकना पड़ेगा
वहशी निगाहों का सामना करते हुए
ओवरटाइम के बहाने देर रात तक भोर दुपहरी, साँझ, र
सब के सब नये समीकरण की तलाश में
जैसे पुराने साहब की जगह
आ रहा हो कोई नया साहब । शरद कोकास
9: प्रकृति हूँ मैं ही कविता / जया पाठक श्रीनिवासन | Hindi Kavita nature
कविता का नाम :प्रकृति हूँ मैं ही
कविता के लेखक : जया पाठक श्रीनिवासन
तो तुम्हे लगता है-
कि तुम प्रयोजन हो?
जानते हो –
कड़ी दर कड़ी
बढ़ती है
प्रकृति
ओजसेभरी
अमृत से लबालब
विकसित फूलों की क्यारी सी
जिसमें
आते हो तुम
भटकते – भ्रमर से
इधर उधर
और बीजते हो
अगली फूलों की जमात
तुम्हारा आना और जाना यह
पलभरका
मेरी अनादी-अनंत की गति में
रहजाता
एक बिंदु मात्र
फिर भी,
तुम्हारी उम्र से नापकर
विधाता से
मांगती हूँ हमेशा
अपने लिए कुछ कम घड़ियाँ जाने क्यों
लगता है मुझे भी
अक्सर
कि, तुम ही प्रयोजन हो! जया पाठक श्रीनिवासन
10:प्रकृति-परी कविता / सुधा गुप्ता | Hindi poem about nature
प्रकृति परी
हाथ लिये घूमती
जादू की छड़ी
मोहक रूप धरे
सब का मन हरे धरा सुन्दरी!
तेरा मोहक रूप
बड़ा निराला
निज धुन मगन
हर कोई मतवाला वसन्त आया
बहुत ही बातूनी
हुई हैं मैना
चहकती फिरतीं
अरी, आ, री बहना आम की डाली
खुशबू बिखेरती
पास बुलाती
‘चिरवौनी’ करती है
पिकी, चोंच मार के चाँदनी स्नात
शरद-पूनो रात
भोर के धोखे
पंछी चहचहाते
जाग पड़ता वन मायके आती
गंध मदमाती-सी
कली बेला की
वर्ष में एक बार
यही रीति-त्योहार शेफाली खिली
वन महक गया
ॠतुनेकहा:
गर्व मत करना
पर्व यह भी गया काम न आई
कोहरे की रज़ाई
ठण्डक खाई
छींक-छींक रजनी
आँसू टपका रही दुग्ध-धवल
चाँदनी में नहाया
शुभ्र, मंगल
आलोक जगमग
हँस रहा जंगल तम घिरा रे
काजल के पर्वत
उड़ते आए
जी भर बरसेंगे
धान-बच्चे हँसेंगे घुमन्तू मेघ
बड़े ही दिलफेंक
शम्पा को देखा
शोख़ी पे मर मिटे
कड़की, डरे, झरे बड़ी सुबह
सूरज मास्टर दा’
किरण-छड़ी
ले, आते-धमकाते
पंछी पाठ सुनाते सलोनी भोर
श्वेत चटाई बिछा
नीले आँगन
फुरसत में बैठी
कविता पढ़ रही फाल्गुनी रात
बस्तर की किशोरी
सज-धजके
‘घोटुल’ को तैयार
चाँद ढूँढ लिया है वर्षा की भोर,
मेघों की नौका-दौड़
शुरूहोगई
‘रेफरी’ थी जो हवा,
खेल शामिल हुई वन पथ में
जंगली फूल-गंध
वनैली घास
चीना-जुही लतर
सोई राज कन्या-सी सज के बैठी
आकाश की अटारी
बालिका-बधू
नीला आँचल उठा
झाँके मासूम घटा वर्षा से ऊबे
शरदाकाश तले
हरी घास पे
रंग-बिरंगे पंछी
पिकनिक मनाते आज सुबह
आकाश में अटकी
दिखाई पड़ी
फटी कागज़ी चिट्ठी
आह! टूटा चाँद था!! ज्वर से तपे
जंगलके पैताने
आबैठीधूप
प्यासा बेचैन रोगी
दो बूँद पानी नहीं कोयलिया ने
गाए गीत रसीले
कोईन रीझा
धन की अंधी दौड़
कान चुरा ले भागी जी भर जीना
गाना-चहचहाना
पंछी सिखाते:
केवल वर्तमान
कल का नहीं भान परिन्दे गाते
कृतज्ञता से गीत
प्रभु की प्रति:
उड़ने को पाँखें दीं
और चंचु को दाना पौष का सूर्य
सामने नहीं आता
मुँह चुराता
बेवफ़ा नायक-सा
धरती को फुसलाता धरा के जाये
वसन्त आने पर
खिलखिलाए
फूले नहीं समाए
मस्ती में गीत गाए बहुत छोटा
तितली का जीवन
उड़ती रहे
पराग पान करे
कोई कुछ न कहे जंगल गाता
भींगुर लेता तान
झिल्ली झंकारे
टिम-टिम जुगनू
तरफओं के चौबारे अपने भार
झुका है हरसिंगार
फूलों का बोझ
उठाए नहीं बने
खिले इतने घने सूरज मुखी
सूर्य दिशा में घूमें
पूरे दिवस
प्रमाण करते-से
भक्ति भाव में झूमें पावस ॠतु:
प्रिया को टेर रहा
हर्षित मोर
पंख पैफला नाचता
प्रेम-कथा बाँचता पेड़ हैरान
पूछें- हे भगवान्!
इंसानी त्मिप्सा
हम क्या करेंगे जी?
कट-कट मरेंगे जी? हुई जो भोर
टुहँक पड़े मोर
देखा नशारा
नीली बन्दनवार
अक्षितिज सजी थी छींेंटे, बौछार
भिगो, खिलखिलाता
शोख़ झरना
स्पफटिक की चादर
किसने जड़े मोती? पाँत में खड़े
गुलमोहर सजे
हरी पोशाक
चोटी में गूँथे पूफल
छात्राएँ चलीं स्कूल ठण्डी बयार
सलोनी-सी सुबह
मीठी ख़ुमारी
कोकिल कूक उठी
अजब जादूगरी बढ़ता जाये
ध्रती का बुख़ार
आरनपार
उन्मत्त है मानव
स्वयंघाती दानव दिवा अमल
सरि में हलचल
पालध्वल
खुले जो तट बँध्
नौका चली उछल पेंफकता आग
भर-भर के मुट्ठी
धरा झुलसी
दिलजला सूरज
जला के मानेगा रात के साथी
सब विदा हो चुके
पैफली उजास
अटका रह गया
पफीके ध्ब्बे-सा चाँद आया आश्विन
मतवाला बनाए
हवा खुनकी
मनचीता पाने को
चाह पिफर ठुनकी सृष्टि सुन्दरी
पिफर पिफर रिझाती
मत्त यौवना
टूट जाता संयम
अनादि पुरूष का मैल, कीचड़
सड़े पत्तों की गंध्
लपेटे तन
बंदर-सी खुजाती
आ खड़ी बरसात सिर पे ताज
पीठ पर है दाग्ा
गीतों की रानी
गाती मीठा तरानाµ
वसन्त! पिफर आना प्रिय न आए
बैठी दीप जलाए
आकाश तले
आँसू गिराती निशा
न रो, उषा ने कहा गुलाबी, नीले
बैंगनीवध्वल
रंग-निर्झर
सावनी की झाड़ियाँ
हँस रहीं जी भर बुलबुल का
बहार से मिलन
रहा नायाब
गाती रही तराना
खिलते थे गुलाब किसकी याद
सिर पटकती है
लाचार हवा
खोज-खोज के हारी
नहीं दर्द की दवा आ गया पौष
लाया ठण्डी सौगातें
बप़्ार्फीली रातें
पछाड़ खाती हवा
कोई घर न खुला सुधा गुप्ता
11: प्रकृति कविता / डी. एम. मिश्र | poem of nature
विधाता रहस्य रचता है
मनुष्य विस्मय में डूब जाता है
फिर जैसी जिसकी आस
वैसी उसकी तलाश
नतीज़े दिखाकर
प्रकृति मुमराह नहीं करती
प्रकृति जानती है
वह बड़ी है
पर, आस्था और
विश्वास पर खड़ी है
जहाँ एक पूजा घर होने से
बहुत कुछ बच जाता है खोने से
अनन्त का आभास
निकट से होता है
एक आइना अपनी धुरी पर
धूमता हुआ
बहुत दूर निकल जाता है
तब क्या-क्या
सामने आता है
जटिलताओं का आभास
फूल-पत्तियों को कम
जड़ों और बारीक तंतुओं को ज्यादा होता है
जहाँ भाषा और जुबान का
कोई काम नहीं होता डी. एम. मिश्र
प्रकृति / डी. एम. मिश्र Nature Poems in Hindi
12: प्रकृति है वह कविता अंग्रेजी / एमिली डिकिंसन | English nature poems
प्रकृति है वह जो हम देखते हैं,
ये पहाड़ – वो दोपहर
गिलहरी – ग्रहण – भँवरा,
न, न, प्रकृति है स्वर्ग –
प्रकृति है वह जो हम सुनते हैं,
बोबोलिंक – समन्दर
तूफ़ान – क्रिकेट
न न, प्रकृति है समरसता,
प्रकृति वहहै जो हम जानते हैं,
फिर भी वह रह जाती अनबूझी,
सच, उसकी सरलता के आगे,
हमारी विद्वता दिखती कितनी बौनी! एमिली डिकिंसन
13: प्रकृति माँ कविता / मनोज चौहान | Nature by कविता
हे प्रकृति माँ ,
मैं तेरा ही अंश हूं,
लाख चाहकरभी,
इस सच्चाई को ,
झुठला नहीं सकता ।
मैंने लिखी है बेइन्तहा,
दास्तान जुल्मों की,
कभी अपने स्वार्थ के लिए,
काटे हैं जंगल,
तो कभी खेादी है सुंरगें,
तेरा सीना चीरकर । अपनी तृष्णा की चाह में,
मैंने भेंट चढ़ा दिए हैं,
विशालकाय पहाड.,
ताकि मैं सीमेंट निर्माण कर,
बना संकू एक मजबूत और,
टिकाऊ घर अपने लिए । अवैध खनन में भी ,
पीछे नहीं रहा हूँ ,
पानी के स्त्रोत,
विलुप्त कर,
मैंने रौंद डाला है,
कृषि भूमि के,
उपजाऊपन को भी l चंचलता से बहते,
नदी,नालों और झरनों को,
रोक लिया है मैंने बांध बनाकर,
ताकि मैं विद्युत उत्पादन कर,
छू संकू विकास के नये आयाम l तुम तो माता हो,
और कभी कुमाता,
नहीं हो सकती,
मगर मैं हर रोज ,
कपूत ही बनता जा रहा हूं।
अपने स्वार्थों के लिए ,
नित कर रहा हूँ ,
जुल्म तुम पर,
फिर भी तुमने कभी ,
ममता की छांव कम न की । दे रही हो हवा,पानी,धूप,अन्न
आज भी,
और कर रही हो,
मेरा पोषण हर रोज। मनोज चौहान
14: देख प्रकृति की ओर कविता / शास्त्री नित्यगोपाल कटारे
देख प्रकृति की ओर
मन रे! देख प्रकृति की ओर ।
क्यों दिखती कुम्हलाई संध्या
क्यों उदास है भोर
देख प्रकृति की ओर । वायु प्रदूषित नभ मंडल
दूषित नदियों का पानी
क्यों विनाश आमंत्रित करता है मानव अभिमानी
अंतरिक्ष व्याकुल-सा दिखता
बढ़ा अनर्गल शोर
देख प्रकृति की ओर । कहाँ गए आरण्यक लिखने वाले
मुनि संन्यासी
जंगल में मंगल करते
वे वन्यपशु वनवासी
वन्यपशु नगरों में भटके
वन में डाकू चोर
देख प्रकृति की ओर । निर्मल जल में औद्योगिक मल
बिल्कुल नहीं बहायें
हम सब अपने जन्मदिवस पर
एक-एक पेड़ लगाएँ
पर्यावरण सुरक्षित करने
पालें नियम कठोर
देख प्रकृति की ओर । जैसे स्वस्थ त्वचा से आवृत
रहे शरीर सुरक्षित
वैसे पर्यावरण सृष्टि में
सब प्राणी संरक्षित
क्षिति जल पावक गगन वायु में
रहे शांति चहुँ ओर
देख प्रकृति की ओर । शास्त्री नित्यगोपाल कटारे
15: प्रकृति बिना मनुष्य कविता / रेखा चमोली
नदी तब भी थी
जब कोई उसे नदी कहने वाला न था
पहाड़ तब भी थे
हिमालय भले ही इतना ऊॅचा न रहा हो
ना रहे हों समुद्र में इतने जीव
नदी पहाड हिमालय समुद्र
तब भी रहंेगे
जब नहीं रहेंगे इन्हें पुकारने वाले
इन पर गीत लिखने वाले
इनसे रोटी उगाने वाले
नदी पहाड़ हिमालय समुद्र
मनुष्य के बिना भी
नदी पहाड़ हिमालय समुद्र हैं
इनके बिना मनुष्य, मनुष्य नहीं। रेखा चमोली
16:प्रकृति कविता / निधि सक्सेना | Poem on Beauty of Nature in Hindi
बरगद का वृक्ष देख कर
याद आते हैं बूढ़े दादा
कई हाथों से खुद को थामे
पुकारते
कि कुछ पल ठहरो
तनिक सुस्ता लो
घनी छाँव है मेरी बाबा जैसा है पीपल
विशाल
अलौकिक
जो पतझड़ में भी
अपने कुछ पत्ते बचा लेता है
अपने बच्चों के लिए केले का पेड़ देख कर याद आती हैं माँ
दुबली पतली
अपनी सीमित संपदा में भी
खनिजों से भरपूर खाद्य भंडार उत्पन्न कर लेतीं अपने बगीचे में लगे नन्हे गुलाब देख
अपने बच्चे याद आते हैं
इन्हीं हाथों लगे
बढ़े
फले फूले और पारिजात जैसे ‘तुम’
हर सांझ प्रेम ओढ़ लेते
पग में असंख्य तारे बिछाते
प्रतीक्षा में पुष्प बिछाते
भावों संग खिलते बुझते
झरते
भोर से पहले बिखर जाते
किसी उदास प्रेमी की तरह सभी रिश्तों को
प्रकृति ने कैसे
अपनी हथेली में समेटा है. निधि सक्सेना
17:प्रकृति में तुम कविता / पुष्पिता | Poems on Nature in Hindi
सूर्य की चमक में
तुम्हारा ताप है
हवाओं में
तुम्हारी साँस है
पाँखुरी की कोमलता में
तुम्हारा स्पर्श
सुगंध में
तुम्हारी पहचान। जब जीना होता है तुम्हें
प्रकृति में खड़ी हो जाती हूँ
और आँखें
महसूस करती हैं
अपने भीतर तुम्हें। मैं अपनी परछाईं में
देखती हूँ तुम्हें
परछाईं के काग़ज़ पर
लिखती हूँ गहरी परछाईं के
प्रणयजीवी शब्द। तुम मेरी आँखों के भीतर
जो प्यार की पृथ्वी रचते हो
उसे मैं शब्द की प्रकृति में
घटित करती हूँ। पुष्पिता
18:प्रकृति की ओर कविता / भरत प्रसाद | Hindi Poems On Nature
कविता का नाम :प्रकृति की ओर
कविता के लेखक : भरत प्रसाद
प्रातः बेला
टटके सूरज को जी भर देखे
कितने दिन बीत गए।
नहीं देख पाया
पेड़ों के पीछे उसे
छिप-छिपकर उगते हुए।
नहीं सुन पाया
भोर आने से पहले
कई चिड़ियों का एक साथ कलरव।
नहीं पी पाया
दुपहरी की बेला
आम के बगीचे में झुर-झुर बहती
शीतल बयार। उजास होते ही
गेहूँ काटने के लिए
किसानों, औरतों, बच्चों और बेटियों का जत्था
मेरे गाँव से होकर
आज भी जाता होगा।
देर रात तक
आज भी
खलिहान में
पकी हुई फ़सलों का बोझ
खनकता होगा।
हमारे सीवान की गोधूलि बेला
घर लौटते हुए
बछड़ों की हर्ष-ध्वनि से
आज भी गूँजती होगी। फिर कब देखूँगा?
गनगनाती दुपहरिया में
सघन पत्तियों के बीच छिपा हुआ
चिड़ियों का जोड़ा।
फिर कब सुनूँगा?
कहीं दूर
किसी किसान के मुँह से
रात के सन्नाटे में छिड़ा हुआ
कबीर का निर्गुन-भजन।
फिर कब छूऊँगा?
अपनी फसलों की जड़ें
उसके तने, हरी-हरी पत्तियाँ
उसकी झुकी हुई बालियाँ। अपने घर के पिछवाड़े
डूबते समय
डालियों, पत्तियों में झिलमिलाता हुआ सूरज
बहुत याद आता है। अपने चटक तारों के साथ
रात में जी-भरकर फैला हुआ
मेरे गाँव के बगीचे में
झरते हुए पीले-पीले पत्ते
कब देखूँगा?
उसकी डालियों, शाखाओं पर
आत्मा को तृप्त कर देने वाली
नई-नई कोंपलें कब देखूँगा? भरत प्रसाद
हम आशा करते है की ये प्रकृति पर कविता आपको पसंद आया होगा | अगर आपको Hindi Nature Poems और भी आते है तो कमेंट में लिखे और इन Nature Poems in Hindi को अपने दोस्तों के साथ शेयर ज़रूर करे.
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Beautiful Poem on Nature in Hindi Language
When you hear the word nature, what do you think of, is it? Do you think it is essential? Nature is everything that has been brought to this planet, be it the food we eat, the water we drink, or the wood we build our homes from. Others may think nature is just the seas and backwoods, but regardless of what you think nature is, we should deal with it as a whole as it was given to us. The early pioneers did not generally regard nature as the source of life, as the nature they lived with was so vast and pristine that they could never imagine that what they did to it would harm it in any way . You can read more about nature and feel it in the beautiful poem about nature in Hindi Script on the internet. You can also share them with your friends and close people. Here we added a beautiful natural poem in Hindi language for children, प्कृति की प हिंदी कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ कवितायेँ हिंदी हिंदी हिंदी हिंदी
Beautiful poem about nature in Hindi | प्रकृति की सुंदरता पर हिंदी कवितायेँ
1) प्रकृति की सुंदरता पर हिंदी कविता
ये प्रकृति शायद कुछ कहना चाहती है हमसे
ये हवाओ की सरसराहट,
ये पेड़ो पर फुदकते चिड़ियों की चहचहाहट,
ये समुन्दर की लहरों का शोर,
ये बारिश में नाचते सुंदर मोर,
कुछ कहना चाहती है हमसे,
ये प्रकृति शायद कुछ कहना चाहती है हमसे।। ये खुबसूरत चांदनी रात,
ये तारों की झिलमिलाती बरसात,
ये खिले हुए सुन्दर रंगबिरंगे फूल,
ये उड़ते हुए धुल,
कुछ कहना चाहती है हमसे,
ये प्रकृति शायद कुछ कहना चाहती है हमसे।। ये नदियों की कलकल,
येमौसमकीहलचल,
ये पर्वत की चोटियाँ,
ये झींगुर की सीटियाँ,
कुछ कहना चाहती है हमसे,
ये प्रकृति शायद कुछ कहना चाहती है हमसे।।
2) वसंत कविता हिंदी में
बागो में जब बहार आने लगे,
कोयल अपना गीत सुनाने लगे,
कलियों में निखार छाने लगे,
भँवरे जब उन पर मंडराने लगे,
Continue reading खेतो में फसल पकने लगे,
खेत खलिहान लहलाने लगे,
डाली पे फूल मुस्काने लगे,,
चारो और खुशबु फैलाने लगे
Continue reading आमो पे बौर जब आने लगे,
पुष्प मधु से भर जाने लगे,
भीनी भीनी सुगंध आने लगे,
तितलियाँ उनपे मंडराने लगे,
Read more सरसो पे पीले पुष्प दिखने लगे,
वृक्षों में नई कोंपले खिलने लगे,
प्रकृति सौंदर्य छटा बिखरने लगे,
वायु भी सुहानी जब बहने लगे,
Continue reading धूप जब मीठी लगने लगे,
सर्दी कुछ कम लगने लगे,
मौसम में बहार आने लगे,
ऋतु दिलको लुभाने लगे,
Read more चाँद भी जब खिड़की से झाकने लगे,
चुनरी सितारों की झिलमिलाने लगे,
योवन जब फाग गीत गुनगुनाने लगे,
चेहरों पर रंग अबीर गुलाल छाने लगे,
Continue reading
3) प्रकृति की सुंदरता पर कविता
माँ की तरह हम पर प्यार लुटाती है प्रकृति
बिना मांगे हमें कितना कुछ देती जाती है प्रकृति।
दिन में सूरज की रोशनी देती है प्रकृति
रात में शीतल चाँदनी लाती है प्रकृति।
भूमिगत जल से हमारी प्यास बुझाती है प्कृति
और बारिश में रिमझिम जल बरसाती है प्रकृति।
दिन-रात प्राणदायिनी हवा चलाती है प्रकृति
मुफ्त में हमें ढेरों साधन उपलब्ध कराती है प्ि
कहीं रेगिस्तान तो कहीं बर्फ बिछा रखे हैं इसने
कहीं पर्वत खड़े किए तो कहीं नदी बहा रखे हैं इसेे
कहीं गहरे खोदे कहीं बंजर जमीन बना नखे हईस हईस बना
”
मानव इसका उपयोग करे इससे, इसे कोई ऐतराज नहीं
लेकिन मानव इसकी सीमाओं को तोड़े यह इसको मंजूह
जब-जब मानव करता है, तब-तब चेतवानी देती हई जब-जब मानव उदंडता करता करता
जब-जब इसकी नजनजाज की जाती है, तब-तब सजा देती है है यह
”
क्योंकि सवाल है हमाे भविष्य का, यह खेल-कहानी न ऀथ
मानव प्रकृति अनुसार यही मानव के हित में हे हित हे
प्रकृति का सम्मान करें सब, यही हमारे हित में है।
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4) सुन्दर धरती कविता
हे भगवान् तेरी बनाई यह धरती, कितनी ही सुन्दर
नए – नए और तरह – तरह के
एक नही कितने ही अनेक रंग
कोई गुलाबी कहता
तो कोई बैंगनी, तो कोई लाल
तपती गर्मी मैं
हे भगवान् , तुम्हारा चन्दन जैसे वृक्ष
सीतल हवा बहाते
खुशी के त्यौहार पर
पूजा के वक़्त पर
हे भगवान् , तुम्हारा पीपल ही
तुम्हारा रूप बनता
तुम्हारे ही रंगो भरे पंछी
नील अम्बर को सुनेहरा बनाते
तेरे चौपाये किसान के साथी बनते
हे भगवान् तुम्हारी यह धरी बड़ी ही मीठी
5) Small poem about nature in Hindi characters
सुन्दर रूप इस धरा का,
आँचल जिसका नीला आकाश,
पर्वत जिसका ऊँचा मस्तक,
उस पर चाँद सूरज की बिंदियों का ताज। नदियों-झरनो से छलकता यौवन
सतरंगी पुष्प-लताओं ने किया श्रृंगार
खेत-खलिहानों में लहलाती फसले
बिखराती मंद-मंद मुस्कान। हाँ, यही तो हैं, ……
इस प्रकृति का स्वछंद स्वरुप
प्रफुल्लित जीवन का निष्छल सार।
6) Prakriti Ki Kali Ghata Par Kavita
काली घटा छाई हैं
लेकर साथ अपने यह
ढेर सारी खुशियां लायी हैं
ठंडी ठंडी सी हवा यह
बहती कहती चली आ रही हैं
काली घटा छाई हैं
कोई आज बरसों बाद खुश हुआ
तो कोई आज खुसी से पकवान बना रहा
बच्चों की टोली यह
कभी छत तो कभी गलियों में
किलकारियां सीटी लगा रहे
काली घटा छाई हैं
जो गिरी धरती पर पहली बूँद
देख ईसको किसान मुस्कराया
संग जग भी झूम रहा
जब चली हवाएँ और तेज
आंधी का यह रूप ले रही
लगता ऐसा कोई क्रांति अब सुरु हो रही
छुपा जो झूट अमीरों का
कहीं गली में गढ़ा तो कहीं
बड़ी बड़ी ईमारत यूँ ड़ह रही
अंकुर जो भूमि में सोये हुए थे
महसूस इस वातावरण को
वोभीअबफूटने लगे
देख बगीचे का माली यह
खुसी से झूम रहा
और कहता काली घटा छाई हैं
साथ अपने यह ढेर सारी खुशियां लायी हैं।
Go for – वक़्त शायरी
7) Beautiful Hindi Kavita about nature
लो आ गया फिर से हँसी मौसम बसंत का
शुरुआत है बस ये निष्ठुर जाड़े के अंत का।
गर्मी तो अभी दूर है वर्षा ना आएगी
फूलों की महक हर दिशा में फ़ैल जाएगी। पेड़ों में नई पत्तियाँ इठला के फूटेंगी
प्रेम की खातिर सभी सीमाएं टूटेंगी।
सरसों के पीले खेत ऐसे लहलहाएंगे
सुख के पल जैसे अब कहीं ना जाएंगे। आकाश में उड़ती हुई पतंग ये कहे
डोरी से मेरा मेल है आदि अनंत का।
लो आ गया फिर से हँसी मौसम बसंत का
शुरुआत है बस ये निष्ठुर जाड़े के अंत का। ज्ञान की देवी को भी मौसम है ये पसंद
वातवरण में गूंजते है उनकी स्तुति के छंद।
स्वर गूंजता है जब मधुर वीणा की तान का
भाग्य ही खुल जाता है हर इक इंसान का। माता के श्वेत वस्त्र यही तो कामना करें
विश्व में इस ऋतु के जैसी सुख शांति रहे।
जिसपे भी हो जाए माँ सरस्वती की कृपा
चेहरे पे ओज आ जाता है जैसे एक संत का। लो आ गया फिर से हँसी मौसम बसंत का
शुरुआत है बस ये निष्ठुर जाड़े के अंत का।
8) Long Hindi Kavita on Nature
यह प्रकृति कुछ कहना चाहती हैं
यह प्रकृति कुछ कहना चाहती हैं,
अपने दिल का भेद खोलना चाहती हैं,
भेजती रही है हवाओं द्वारा अपना संदेशा।
ज़रा सुनो तो ! जो वह कहना चाहती हैं। उसका अरमान ,उसकी चाहत है क्या ?
सिवा आदर के वो कुछ चाहती है क्या ?
बस थोड़ा सा प्यार ,थोड़ा सा ख्याल,
यही तो मात्र मांग है इसकी,
और भला वह हमसे मांगती है क्या ? यह चंचल नदियां इसका लहराता आँचल,
है काले केश यह काली घटाओं सा बादल,
,पेड़ -पौधे और वनस्पतियां,
हरियाली सी साड़ी में लगती है क्या कमाल।
इसका रूप -श्रृंगार हमारी खुशहाली नहीं हैं क्या? है ताज इसका यह हिमालय पर्वत
उसकी शक्ति-हिम्मत शेष सभी पर्वत
अक्षुण रहे यह तठस्थता व् मजबूती
क्योंकि इसका गर्व है यह सभी पर्वत।
इसका यह गौरव हमारी सुरक्षा नहीं हैं क्या ? यह रंगीन बदलते हुए मौसम,
शीत, वसंत, ग्रीष्मऔ सावन,
हमारे जीवन सा परिवर्तन शील यह,
और सुख-दुःख जैसे रात- दिन।
जिनसे मिलता है नित कोई पैगाम नया, क्या ? इस प्रकृति पर ही यदि निर्भरता है हमारी,
सच मानो तो यही माता भी है हमारी,
,
यही जीवनदायिनी व यही मुक्तिदायिनी है हमारी। अपने ही मूल से नहीं हो रहे हम अनजान क्या
हमें समझाना ही होगा ,अब तक जो ना समझ पाये
, , , , , , , ,
दिया ही दिया उसने अब तक अपना सर्वस्व, कभी लिया नह
इसके एहसानों, उपकारों मोल क्यों ना चूका पायेा
?
Visit also – माँ की ममता शायरी
9) The Beauty of Nature Poem in Hindi Fonts
हैं सुहाना बड़ा तेरा ये जहां,
हैं रंग, प्यार ऑर खुशिया यहां
माना हैं गम, चुभन ऑर दर्द भी,
भुलाकर इन्हें जीते है लोग जिंदगी।
रंग सुनहरा लिए निकले जब रवि,
बिखेर दे सोना तब हर कहीं
हर सुबह लॉटाये एक जिंदगी नयी,
लहलाए खेत में फसले तब वहीं।
भुलकर पतझड को,हो रंगीन जब चमन,
खिले हर कली तब, जीत ले सबका मन
देकर महकभरी मुस्कराहट, फूल भी
बिखेरे तब खुशियों का दामन्
न जाने कहे क्या ये भॉरे,
कान में फूलों ऑर कलियों के
जब ढ्ले शाम सुनहरी,
छा जाए सोना बनकर छतरी,
खोजे आशियां अपना तब हर प्राणी।
चुराकर किरण सुरज से,
निकले चांद तब हॉले से
लेकर आए पॅगाम प्यार का,
फॅलाए तब धुंधला सबेरा
छा गए तारे भी आसमां पर,
चांदनी रात में बना दे चांद,
हर किसी को दिवाना, आशिक ऑर कवि।
10) Prakriti Par Kavita in Hindi texts
प्रकृति। धरा पर कुछ भी अपने लिए नहीं करती,
नदियाँ पहाड़ों से अपने लिए नहीं उतरती
चाँद सूरज भी कहाँ अपने लिए चमकते हैं?
प्यार भरे दिल भी दूसरों के लिए धड़कते हैं
फूल- वृक्ष की डाली अपने लिए नहीं फलती,
प्रकृति धरा पर कुछ भी अपने लिए नही करती
मनुज तू ही क्यूं फिर अपने में लगा रहता हैं?
इस धरा की धारा में तू क्यूं नहीं बहता हैं?
यह इक बात है मेरे गले से नहीं उतरती,
प्रकृति तू हमको भी क्यूं अपना -सा नही करती?
प्रकृति धरा पर कुछ भी अपने लिए नहीं करती,
नदियाँ पहाड़ों से अपने लिए नहीं उतरती|
बहे पवन फिर महके उपवन सभी के वास्ते
चले गगन फिर बरसे जल -धन सभी के वास्ते
दिखाती राह सच्चार्इ बने खुशी की परछाई,
करे प्रकाश लौ दीपक की सभी के वास्ते
रोशन आग काले अँधेरों के लिए ,
चमक सितारों की भी अपनी लिए नहीं होती।
रात तेरे बाद सुबह होने से नहीं मुकरती,
प्रकृति धरा पर कुछ भी अपने लिए नहीं करती। ~धीरज शर्मा
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Poem about nature in Hindi – दोस्तों पोस में में पा ित लिखी लोकप्िय लोकप्िय कविताओं संग्ह निचे हैं गया. स्कूल में भी Hindi Poems About Nature के बारे में पढाया जाता हैं. ”
प्रकृतिक एक माँ की तरह हमारी जीवनदायी हैं. ” जिससे हमारा जीवन आसान हो जाता हैं.
. . . . जो आने वाले समय में संकट बहुत गहरा सकता हैं.
” ”
कवि प्राकृति के बहुत ही करीब होते हैं. छायावादी के ने तो प्राकृतिक को आधा Next poem about nature in Hindi हमें हैं की यह Poems in Hindi about nature, Hindi Kavita about nature आपको बहुत पसंद.
प्रकृति पर कविता, Hindi poem about nature, Hindi poems about nature
1. Poem about nature in Hindi – संभल जाओ ऐ दुनिया वालो
संभल जाओ ऐ दुनिया वालो
वसुंधरा पे करो घातक प्रहार नही !
रब करता आगाह हर पल
प्रकृति पर करो घोर अत्यचार नही !!
लगा बारूद पहाड़, पर्वत उड़ाए
स्थल रमणीय सघन रहा नही !
खोद रहा खुद इंसान कब्र अपनी
जैसे जीवन की अब परवाह नही !!
लुप्त हुए अब झील और झरने
वन्यजीवो को मिला मुकाम नही !
मिटा रहा खुद जीवन के अवयव
धरा पर बचा जीव का आधार नहीं !!
नष्ट किये हमने हरे भरे वृक्ष,लताये
दिखे कही हरयाली का अब नाम नही !
लहलाते थे कभी वृक्ष हर आँगन में
बचा शेष उन गलियारों का श्रृंगार नही !
कहा गए हंस और कोयल, गोरैया
गौ माता का घरो में स्थान रहा नही !
जहाँ बहती थी कभी दूध की नदिया
कुंए,नलकूपों में जल का नाम नही !!
तबाह हो रहा सब कुछ निश् दिन
आनंद के आलावा कुछ याद नही
नित नए साधन की खोज में
पर्यावरण का किसी को रहा ध्यान नही !!
विलासिता से शिथिलता खरीदी
करता ईश पर कोई विश्वास नही !
भूल गए पाठ सब रामयण गीता के,
कुरान,बाइबिल किसी को याद नही !!
त्याग रहे नित संस्कार अपने
बुजुर्गो को मिलता सम्मान नही !
देवो की इस पावन धरती पर
बचा धर्म -कर्म का अब नाम नही !!
संभल जाओ ऐ दुनिया वालो
वसुंधरा पे करो घातक प्रहार नही !
रब करता आगाह हर पल
प्रकृति पर करो घोर अत्यचार नही !!
डी. के. निवातियाँ
2. Poems in Hindi about nature – रह रहकर टूटता रब का कहर
रह रहकर टूटता रब का कहर
खंडहरों में तब्दील होते शहर
सिहर उठता है बदन
देख आतंक की लहर
आघात से पहली उबरे नहीं
तभी होता प्रहार ठहर ठहर
कैसी उसकी लीला है
ये कैसा उमड़ा प्रकति का क्रोध
विनाश लीला कर
क्यों झुंझलाकर करे प्रकट रोष
अपराधी जब अपराध करे
सजा फिर उसकी सबको क्यों मिले
पापी बैठे दरबारों में
जनमानष को पीड़ा का इनाम मिले
हुआ अत्याचार अविरल
इस जगत जननी पर पहर – पहर
कितना सहती, रखती संयम
आवरण पर निश दिन पड़ता जहर
हुई जो प्रकति संग छेड़छाड़
उसका पुरस्कार हमको पाना होगा
लेकर सीख आपदाओ से
अब तो दुनिया को संभल जाना होगा
कर क्षमायाचना धरा से
पश्चाताप की उठानी होगी लहर
शायद कर सके हर्षित
जगपालक को, रोक सके जो वो कहर
बहुत हो चुकी अब तबाही
बहुत उजड़े घरबार,शहर
कुछ तो करम करो ऐ ईश
अब न ढहाओ तुम कहर !!
अब न ढहाओ तुम कहर !!
धर्मेन्द्र कुमार निवातियाँ
3. प्रकृति पर कविता – लाली है, हरियाली है
लाली है, हरियाली है,
रूप बहारो वाली यह प्रकृति,
मुझको जग से प्यारी है।
हरे-भरे वन उपवन,
बहती झील, नदिया,
मन को करती है मन मोहित।
प्रकृति फल, फूल, जल, हवा,
सब कुछ न्योछावर करती,
ऐसे जैसे मां हो हमारी।
हर पल रंग बदल कर मन बहलाती,
ठंडी पवन चला कर हमे सुलाती,
बेचैन होती है तो उग्र हो जाती।
कहीं सूखा ले आती, तो कहीं बाढ़,
कभी सुनामी, तो कभी भूकंप ले आती,
इस तरह अपनी नाराजगी जताती।
सहेज लो इस प्रकृति को कहीं गुम ना हो जाए,
हरी-भरी छटा, ठंडी हवा और अमृत सा जल,
कर लो अब थोड़ा सा मन प्रकृति को बचाने का।
नरेंद्र वर्मा
4. Hindi Kavita on Nature – प्रकृति से प्रेम करें
आओ आओ प्रकृति से प्रेम करें,
भूमि मेरी माता है,
और पृथ्वी का मैं पुत्र हूं।
मैदान, झीलें, नदियां, पहाड़, समुंद्र,
सबमेरेभाई-बहनहै,
इनकी रक्षा ही मेरा पहला धर्म है।
अब होगी अति तो हम ना सहन करेंगे,
खनन-हनन व पॉलीथिन को अब दूर करेंगे,
प्रकृति का अब हम ख्याल रखेंगे।
हम सबका जीवन है सीमित,
आओ सब मिलकर जीवन में उमंग भरे,
आओ आओ प्रकृति से प्रेम करें।
प्रकृति से हम है प्रकृति हमसे नहीं,
सब कुछ इसमें ही बसता,
इसके बिना सब कुछ मिट जाता।
आओ आओ प्रकृति से प्रेम करें।
नरेंद्र वर्मा
5. Hindi Poems about Environment – वन, नदियां, पर्वत व सागर
वन, नदियां, पर्वत व सागर,
अंग और गरिमा धरती की,
इनको हो नुकसान तो समझो,
क्षति हो रही है धरती की।
हमसे पहले जीव जंतु सब,
आए पेड़ ही धरती पर,
सुंदरता संग हवा साथ में,
लाए पेड़ ही धरती पर।
पेड़ -प्रजाति, वन-वनस्पति,
अभयारण्य धरती पर,
यह धरती के आभूषण है,
रहे हमेशा धरती पर।
बिना पेड़ पौधों के समझो,
बढ़े रुग्णता धरती की,
हरी भरी धरती हो सारी,
सेहत सुधरे धरती की।
खनन, हननवपॉलीथिनसे,
मुक्त बनाएं धरती को,
जैव विविधता के संरक्षण की,
अलख जगाए धरती पर।
रामगोपाल राही
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6. Poem about nature in Hindi – कलयुग में अपराध का
कलयुग में अपराध का
बढ़ा अब इतना प्रकोप
आज फिर से काँप उठी
देखो धरती माता की कोख !!
समय समय पर प्रकृति
देती रही कोई न कोई चोट
लालच में इतना अँधा हुआ
मानव को नही रहा कोई खौफ !!
कही बाढ़, कही पर सूखा
कभी महामारी का प्रकोप
यदा कदा धरती हिलती
फिर भूकम्प से मरते बे मौत !!
मंदिर मस्जिद और गुरूद्वारे
चढ़ गए भेट राजनितिक के लोभ
वन सम्पदा, नदी पहाड़, झरने
इनको मिटा रहा इंसान हर रोज !!
सबको अपनी चाह लगी है
नहीं रहा प्रकृति का अब शौक
“धर्म” करे जब बाते जनमानस की
दुनिया वालो को लगता है जोक !!
कलयुग में अपराध का
बढ़ा अब इतना प्रकोप
आज फिर से काँप उठी
देखो धरती माता की कोख !!
डी. के. निवातियाँ
7. Poems in Hindi about nature – हरे पेड़ पर चली कुल्हाड़ी
हरे पेड़ पर चली कुल्हाड़ी धूप रही ना याद।
मूल्य समय का जाना हमनेखो देने के बाद।।
खूब फसल खेतों से ले ली डाल डाल कर खाद।
पैसों के लालच में कर दी उर्वरता बर्बाद।।
दूर दूर तक बसी बस्तियाँ नगर हुए आबाद।
बन्द हुआ अब तो जंगल से मानव का संवाद।।
ताल तलैया सब सूखे हैं हुई नदी में गाद।
पानी के कारण होते हैं हर दिन नए विवाद।।
पशु पक्षी बेघर फिरते हैं कौन सुने फरियाद।
कुदरत के दोहन ने सबके मन में भरा विषाद।।
सुरेश चन्द्र
8. प्रकृति पर कविता – कहो, तुम रूपसि कौन
कहो, तुम रूपसि कौन?
व्योम से उतर रही चुपचाप
छिपी निज छाया-छबि में आप,
सुनहला फैला केश-कलाप,
मधुर, मंथर, मृदु, मौन!
मूँद अधरों में मधुपालाप,
पलक में निमिष, पदों में चाप,
भाव-संकुल, बंकिम, भ्रू-चाप,
मौन, केवल तुम मौन!
ग्रीव तिर्यक, चम्पक-द्युति गात,
नयन मुकुलित, नत मुख-जलजात,
देह छबि-छाया में दिन-रात,
कहाँ रहती तुम कौन?
अनिल पुलकित स्वर्णांचल लोल,
मधुर नूपुर-ध्वनि खग-कुल-रोल,
सीप-से जलदों के पर खोल,
उड़ रही नभ में मौन!
लाज से अरुण-अरुण सुकपोल,
मदिर अधरों की सुरा अमोल,–
बने पावस-घन स्वर्ण-हिंदोल,
कहो, एकाकिनि, कौन?
मधुर, मंथर तुम मौन?
सुमित्रानंदन पंत
9. Hindi Kavita on Nature – मधुरिमा के, मधु के अवतार
मधुरिमा के, मधु के अवतार
सुधा से, सुषमा से, छविमान,
आंसुओं में सहमे अभिराम
तारकों से हे मूक अजान!
सीख कर मुस्काने की बान
कहां आऎ हो कोमल प्राण!
स्निग्ध रजनी से लेकर हास
रूपसेभरकरसारेअंग,
नये पल्लव का घूंघट डाल
अछूता ले अपना मकरंद,
ढूढं पाया कैसे यह देश?
स्वर्ग के हे मोहक संदेश!
रजत किरणों से नैन पखार
अनोखा ले सौरभ का भार,
छ्लकता लेकर मधु का कोष
चले आऎ एकाकी पार;
कहो क्या आऎ हो पथ भूल?
मंजु छोटे मुस्काते फूल!
उषा के छू आरक्त कपोल
किलक पडता तेरा उन्माद,
देख तारों के बुझते प्राण
न जाने क्या आ जाता याद?
हेरती है सौरभ की हाट
कहो किस निर्मोही की बाट?
महादेवी वर्मा
10. Hindi Poems About Environment – धरती माँ कर रही है पुकार
धरती माँ कर रही है पुकार ।
पेङ लगाओ यहाँ भरमार ।।
वर्षा के होयेंगे तब अरमान ।
अन्न पैदा होगा भरमार ।।
खूशहाली आयेगी देश में ।
किसान हल चलायेगा खेत में ।।
वृक्ष लगाओ वृक्ष बचाओ ।
हरियाली लाओ देश में ।।
सभी अपने-अपने दिल में सोच लो ।
सभी दस-दस वृक्ष खेत में रोप दो ।।
बारिस होगी फिर तेज ।
मरू प्रदेश का फिर बदलेगा वेश ।।
रेत के धोरे मिट जायेंगे ।
हरियाली राजस्थान मे दिखायेंगे ।।
दुनियां देख करेगी विचार ।
राजस्थान पानी से होगा रिचार्ज ।।
पानी की कमी नही आयेगी ।
धरती माँ फसल खूब सिंचायेगी ।।
खाने को होगा अन्न ।
किसान हो जायेगा धन्य ।।
एक बार फिर कहता है मेरा मन ।
हम सब धरती माँ को पेङ लगाकर करते है टनाटन ।।
“जयधरतीमाँ”
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